अंतरराष्ट्रीय हिंदी वर्चुअल पखवाड़े के तहत आयोजित हुई वेबीनार
अंतरराष्ट्रीय हिंदी वर्चुअल पखवाड़े के तहत आयोजित हुई वेबीनार
*महर्षि दयानंद हिंदी को राष्ट्रभाषा का स्वरूप प्रदान करने वाले पहले महापुरुष : रूपकिशोर*
वेबीनार में अमेरिका, फिजी, मॉरीशस सहित बड़ी संख्या में देश-विदेश से जुड़े हिंदी प्रेमी
हरिद्वार, भारतीय संस्कृति सेवार्थ न्यास हरिद्वार तथा कम्युनिटी रेडियो स्टेशन फेडरेशन नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में अंतरराष्ट्रीय हिंदी वर्चुअल पखवाड़े के अंतर्गत आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी जिसका विषय था हिंदी के विकास में आर्य समाज का योगदान का भव्य आयोजन किया गया।गोष्ठी में बड़ी संख्या में देश विदेश के लोग जुटे। उद्घाटन करते हुए गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के कुलपति प्रोफेसर रूप किशोर शास्त्री ने कहा कि आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा बनाने के उद्घोष करने वाले सबसे पहले महापुरुष थे।
प्राप्त विवरण के अनुसार अंतरराष्ट्रीय हिंदी वर्चुअल पखवाड़े के अंतर्गत आयोजित वेबीनार हिंदी विकास में आर्य समाज का योगदान विषय पर विभिन्न विद्वानों ने सारगर्भित उद्बोधन देते हुए हिंदी के उन्नयन वे विकास में महर्षि दयानंद तथा आर्य समाज के योगदान को नमन किया।
उद्घाटन सत्र में विचार व्यक्त करते हुए मॉरीशस के प्रसिद्ध वैदिक विद्वान आचार्य सुनील ने कहा उन्नीस सौ आठ में सत्यार्थ प्रकाश को लेकर के भोलानाथ तिवारी मॉरीशस की धरती पर पहुंचे, महर्षि दयानंद के उस अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश की प्रेरणा की बदौलत मॉरीशस में न सिर्फ स्वतंत्रता का अनुराग जागृत हुआ बल्कि राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति असीम प्रेम व हिंदी को अपनाने का अभियान चल गया, तब से लेकर मॉरीशस में अनेकों समाचार पत्रों का नियमित प्रकाशन होता है। विश्वविद्यालयों से लेकर के प्राइमरी स्तर तक हिंदी का पठन-पाठन एवं मॉरीशस स्थित विश्व हिंदी सचिवालय पूरी दुनिया में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए कृत संकल्प है।
उत्तराखंड आर्य प्रतिनिधि सभा के प्रधान, प्रखर वक्ता तथा प्रोफेसर डॉ विनय विद्यालंकार ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में आर्य समाज द्वारा हिंदी के प्रचार प्रसार के योगदान का स्मरण करते हुए कहा आर्य समाज ही वह एकमात्र संस्था है जिसने हिंदी ही नहीं अपितु अहिंदी क्षेत्रों में भी हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए उल्लेखनीय कार्य किया है ।उन्होंने कहा कि हिंदी पत्रकारिता के जनक आर्य समाज द्वारा प्रकाशित पत्र एवं देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के प्रकाशन के समय उनके प्रथम संपादक आर्य समाज के संस्थाओं से निकले स्नातक ही रहे हैं।
महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक के संस्कृत व पाली विभागाध्यक्ष व डीन प्रोफेसर सुरेंद्र कुमार ने महर्षि दयानंद को हिंदी में भारतीय संस्कृति का पितामह बताते हुए कहा कि उन्होंने अटक से लेकर कटक तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिंदी को एकमात्र राष्ट्रीय भाषा के रूप में अपनाने का आह्वान किया था एवं आर्य समाज के नियम व उप नियमों में हिंदी की आवश्यकता पर जोर दिया गया था, उन्होंने कहा कि महर्षि दयानंद व आर्य समाज ने हिंदी के लिए जो असीम कार्य किए हैं उसका हिंदी साहित्य इतिहास लेखकों ने उस योगदान के अनुरूप स्थान नहीं दिया है जो विचारणीय प्रश्न है।
दौलत राम महाविद्यालय दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व प्राचार्य डॉ स्नेह सुधा नवल ने कहा कि हिंदी के संवर्धन तथा विकास में आर्य समाज की शैक्षिक संस्थाओं का अनुकरणीय योगदान रहा है, गुरुकुल वृंदावन, गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय का योगदान इसमें अविस्मरणीय है जबकि डीएवी कॉलेज लाहौर व अन्य डीएवी संस्थाओं ने भी हिंदी के विकास में महत्वपूर्ण कार्य किया है। आर्य समाज की संस्थाओं ने हिंदी को न सिर्फ संपर्क भाषा के रूप में विकसित करने का काम किया बल्कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भीहिंदी का उन्नयन किया।
विशिष्ट वक्ता के रूप में गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर के कुलपति डॉ हरि गोपाल शास्त्री ने महाविद्यालय ज्वालापुर के हिंदी के क्षेत्र में किए गए योगदान का परिचय देते हुए पदम सिंह शर्मा, गंगा प्रसाद उपाध्याय, आचार्य क्षेम चंद्र सुमन, पंडित प्रकाश शास्त्री जैसे हिंदी के उद्भट विद्वानों व सेविओं का उदाहरण दिया तथा कहा कि गुरुकुल स्नातकों ने भारत ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में हिंदी के उन्नयन तथा विकास में महती योगदान दिया है।
यूनिवर्सिटी ऑफ फिजी के संस्थापक तथा फिजी आर्य प्रतिनिधि सभा के संरक्षक पंडित भगवत दत्त ने गिरमिटिया साहित्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत से बड़ी संख्या में मजदूरी के नाम पर फिजी मॉरीशस आदि देशों में जिन भारतवासियों को लाया गया वह अपने साथ आर्य समाज की धारा तथा महर्षि दयानंद के अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश को साथ लेकर के आए जिसके कारण फिजी में मैं सिर्फ हिंदी का वर्चस्व स्थापित हुआ बल्कि आज हिंदी फिजी की दूसरी राजकीय भाषा है वह हिंदी फिजी में आम बोलचाल की भाषा है जिसे वहां के मूल नागरिक भी बोलते हैं यह सब आर्य समाज के कारण ही संभव हो सका उन्होंने कहा कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्रसंघ की भाषा बनाए जाने के लिए भारत सरकार दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ कार्य करें और दुनिया भर के हिंदी प्रेमी एकजुट होकर मुहिम चलाएं।
आईआईटी रुड़की द्वारा हिंदी के उत्कृष्ट लेखन के लिए राजभाषा पुरस्कार तथा महामहिम राज्यपाल पश्चिम बंगाल द्वारा राजभवन कोलकाता में हिंदी सेवा के लिए कलम केसरी अवार्ड से सम्मानित यतीद्र कटारिया विद्यालंकार ने आर्य समाज द्वारा छेड़े गए हिंदी सत्याग्रह पंजाब व दक्षिण भारत के हैदराबाद में आर्य सत्याग्रह द्वारा हिंदी एवं भारतीय संस्कृति की ध्वजा फहराने के लिए आर्य समाज के योगदान को नमन करते हुए युग प्रवर्तक महर्षि दयानंद की हिंदी के प्रति अगाध श्रद्धा का स्मरण किया।
कार्यक्रम संयोजक वह भारतीय संस्कृति सेवा न्यास के अध्यक्ष अंतर्राष्ट्रीय हिंदी प्रचारक डॉ सतीश कुमार शास्त्री ने कहा कि 1 सितंबर से 15 सितंबर तक चलने वाले हिंदी के पहले इतने विशाल वह सफल अंतरराष्ट्रीय हिंदी वर्चुअल पखवाड़े की सफलता से विश्व भर में हिंदी प्रेमियों में अपार उत्साह है जिसे विभिन्न रेडियो स्टेशन वह टीवी चैनल पर प्रचारित प्रसारित किया जा रहा है उन्होंने कहा कि कल अंतरराष्ट्रीय हिंदी लोकगीत सम्मेलन का कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है और इसी तरह 15 सितंबर तक प्रतिदिन पृथक पृथक विषयों पर हिंदी की महत्ता व हिंदी के संवर्धन पर चर्चा होगी।
संगोष्ठी में विदेश मंत्रालय की हिंदी पत्रिका गगनांचल के संपादक व देश के प्रतिष्ठित साहित्यकार हरीश नवल यशवन्त पाटिल, डीपी सिंह, उज्जवल सिंह वर्मा, रेखा रानी, वासुदेव प्रसाद, देवेंद्र पवार,अमेरिका से सतीश प्रकाश, डॉ ममता रानीआदि की गरिमामय उपस्थिति रही ।
कार्यक्रम संयोजक डॉ सतीश शास्त्री ने आभार व्यक्त किया तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता यूनिवर्सिटी ऑफ फिजी के संस्थापक पंडित भगवत दत्त ने व संचालन अमरोहा के डॉ यतींद्र कटारिया विद्यालंकार ने किया।

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