यहां तो थर-थर कांपता कानून के रखवालों का दिल
..यहां तो थर-थर कांपता कानून के रखवालों का दिल
गजरौला : थाने से लेकर शहर के चौक-चौराहे पर पुलिस कर्मी भले ही सीना तान कर खड़े मिलते हो लेकिन, जब थाने की आवासीय कालोनी में सोने के लिए पहुंचते हैं तो उनका दिल भी कांपने लगता है। क्योंकि यहां की स्थिति कुछ ऐसी ही है। आवास जर्जर हो चुके हैं। कब गिर गए जाएं, इसका कुछ नहीं पता है। इसके बाद भी पुलिस कर्मी रहने के लिए मजबूर हैं।
थाने में मंदिर के सामने आवास बने हैं। इनमें उन लोगों की वेदना करीब से महसूस करने की है जो दिन रात जागकर हम सब की रखवाली करते हैं। हालात बताते हैं कि पुलिस के जर्जर आवास किसी कब्रगाह से कम नहीं हैं। दरकी दीवारें, टूटे-फूटे प्लास्टर, दीवारों पर उगे पेड़, टपकता बारिश का पानी, दीवारों पर जमी काई इन आवासों की बदहाली की दास्तां बयां करते हैं।
खास बात है कि गैर थानों व जनपदों में तैनात पुलिस कर्मियों ने सही वाले आवासों पर कब्जा कर रखा है। जबकि स्थानीय थाने में तैनात पुलिस कर्मी किराए पर या फिर ऐसे जर्जर भवन में रहने को मजबूर हैं। थाने में यूं तो दो दर्जन से अधिक सरकारी आवास हैं लेकिन, उनमें हसनपुर, नौगावां सादात, बछरायूं व रजबपुर थाने में तैनात पुलिस कर्मी भी रह रहे हैं। अकेलापन बढ़ा रहा अवसाद
गजरौला : थाने की आवासीय कालोनी में रहने वाले पुलिसकर्मी गैर थानों में तैनात हैं। उनके द्वारा आवास खाली नहीं किए जा सके हैं। जबकि स्थानीय थाने में तैनात पुलिसकर्मी शहर में किराए के कमरों पर रहने को मजबूर हैं। किराए के कमरों पर रहने वाले पुलिसकर्मी अगर थाने में रहेंगे तो उनके साथ होने वाली घटनाएं कम होंगी। थाने के कुछ आवास जर्जर हालात में हैं, उनके बारे में उच्चाधिकारियों को पत्र लिखा गया है। कुछ आवास ठीक भी हैं। उनमें पुलिस कर्मी रह भी रहे हैं। गैर जनपद में तैनात कोई पुलिस कर्मी आवासीय कालोनी में नहीं रहता है।
आरपी शर्मा, प्रभारी निरीक्षक, गजरौला।

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