मजदूरी दिवस - कोरोना महामारी में हुए मजबूर , हुनर छोड़ थामा ठेला
मजदूरी दिवस - कोरोना महामारी में हुए मजबूर , हुनर छोड़ थामा ठेला
महामारी की मार ने पारंपरिक हुनर के दम पर रोजी-रोटी कमा रहे श्रमिकों को खुद को बदलने पर मजबूर कर दिया है। काम-धंधा ठप होने से बाजार में न तो इनकी कोई जरूरत बची है और न ही इनके हुनर की कोई कीमत। मजबूर मजदूरों ने दो जून की रोटी के लिए अपने हुनर से किनारा कर सब्जी-फल के ठेले थाम लिए हैं।
आजमगढ़ के मुबारकपुर में कालीन बुनाई का काम पूरी तरह बंद है। बड़ी संख्या में बुनकर बेरोजगार बैठे हैं। कालीन बुनने में माहिर 45 वर्षीय असरार अहमद और 30 साल के अनवार आलम के सामने भी रोजी-रोटी का संकट आया तो दोनों ने हथकरघा छोड़ ठेला थामने का फैसला किया। असरार ने पांच हजार रुपए उधार लिए और ठेला ले आया। अब वे घूम-घूमकर फल-सब्जी बेच रहे हैं।
असरार को इस नए काम के बारे में कुछ नहीं पता था, लेकिन अब वे रोजाना दो-ढाई सौ रुपये कमा लेते हैं। असरार को हुनर छूटने का गम तो है लेकिन खुशी भी है। असरार कहते हैं-अब मैं मजदूर नहीं हूं, कमाई भी पहले से ज्यादा है। पुरारानी मुहल्ले के अनवार की कई पीढ़ी बुनकरी का ही काम करती रही है। लॉकडाउन में परिवार के सामने भोजन का संकट खड़ा हुआ तो उन्होंने भी पीढ़ियों का काम छोड़ फल का ठेला लगा लिया। पहले डेढ़-दो सौ रुपए मिलते थे, अब कमाई ज्यादा है। अनवार तो अब हमेशा यही धंधा करने की सोचने लगे हैं।
लौट आया राहुल का उत्साह
मिर्जापुर के पहाड़ी ब्लाक के हरिहरपुर बैदौली गांव निवासी राहुल बिंद बिहार के मुजफ्फरपुर में पीतल के बर्तन के अच्छे कारीगर थे। काम बंद होने पर गांव लौटना पड़ा। उनके पास पूंजी के नाम पर कुछ भी नहीं था। किसी तरह एक ठेले का इंतजाम कर सब्जी बेचने निकल पड़े। दो-चार दिन तक मुनाफे की बजाय नुकसान हुआ। कुछ दिनों बाद स्थिति बदलने लगी। कमाई बढ़ने लगी। अब राहुल ने एक छोटी गाड़ी किराए पर लेकर सब्जी बेचना शुरू कर दिया है। अब रोज 400-500 रुपए तक की कमाई हो जाती है। परिजन बताते हैं कि गांव लौटने के बाद राहुल बेहद निराश था। अब उसका उत्साह लौट आया है।
महामारी की मार ने पारंपरिक हुनर के दम पर रोजी-रोटी कमा रहे श्रमिकों को खुद को बदलने पर मजबूर कर दिया है। काम-धंधा ठप होने से बाजार में न तो इनकी कोई जरूरत बची है और न ही इनके हुनर की कोई कीमत। मजबूर मजदूरों ने दो जून की रोटी के लिए अपने हुनर से किनारा कर सब्जी-फल के ठेले थाम लिए हैं।
आजमगढ़ के मुबारकपुर में कालीन बुनाई का काम पूरी तरह बंद है। बड़ी संख्या में बुनकर बेरोजगार बैठे हैं। कालीन बुनने में माहिर 45 वर्षीय असरार अहमद और 30 साल के अनवार आलम के सामने भी रोजी-रोटी का संकट आया तो दोनों ने हथकरघा छोड़ ठेला थामने का फैसला किया। असरार ने पांच हजार रुपए उधार लिए और ठेला ले आया। अब वे घूम-घूमकर फल-सब्जी बेच रहे हैं।
असरार को इस नए काम के बारे में कुछ नहीं पता था, लेकिन अब वे रोजाना दो-ढाई सौ रुपये कमा लेते हैं। असरार को हुनर छूटने का गम तो है लेकिन खुशी भी है। असरार कहते हैं-अब मैं मजदूर नहीं हूं, कमाई भी पहले से ज्यादा है। पुरारानी मुहल्ले के अनवार की कई पीढ़ी बुनकरी का ही काम करती रही है। लॉकडाउन में परिवार के सामने भोजन का संकट खड़ा हुआ तो उन्होंने भी पीढ़ियों का काम छोड़ फल का ठेला लगा लिया। पहले डेढ़-दो सौ रुपए मिलते थे, अब कमाई ज्यादा है। अनवार तो अब हमेशा यही धंधा करने की सोचने लगे हैं।
लौट आया राहुल का उत्साह
मिर्जापुर के पहाड़ी ब्लाक के हरिहरपुर बैदौली गांव निवासी राहुल बिंद बिहार के मुजफ्फरपुर में पीतल के बर्तन के अच्छे कारीगर थे। काम बंद होने पर गांव लौटना पड़ा। उनके पास पूंजी के नाम पर कुछ भी नहीं था। किसी तरह एक ठेले का इंतजाम कर सब्जी बेचने निकल पड़े। दो-चार दिन तक मुनाफे की बजाय नुकसान हुआ। कुछ दिनों बाद स्थिति बदलने लगी। कमाई बढ़ने लगी। अब राहुल ने एक छोटी गाड़ी किराए पर लेकर सब्जी बेचना शुरू कर दिया है। अब रोज 400-500 रुपए तक की कमाई हो जाती है। परिजन बताते हैं कि गांव लौटने के बाद राहुल बेहद निराश था। अब उसका उत्साह लौट आया है।
मजदूरी दिवस - कोरोना महामारी में हुए मजबूर , हुनर छोड़ थामा ठेला
Reviewed by Hindustan News 18
on
April 30, 2020
Rating:

No comments: